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राष्ट्र जागरण

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वयं राष्ट्रया जाग्रयाम पुरोहित:अर्थात हम राष्ट्र जागरण के प्रहरी है | कयोंकि राष्ट्र हमारी पहचान है | राष्ट्र हमारा स्वाभिमान है | जब तक हम राष्ट्र की रक्षा करेंगे तब तक राष्ट्र भी हमारी रक्षा करेगा | राष्ट्र कमजोर होने पर हम कमजोर होंगे और कमजोरो को जीने का हक नहीं होता | रक्षा के बिखरने के पश्चात् हम बिखर जायेंगे और हज़ारों बढे बलिदानों और कष्टों से पायी आज़ादी भी खो जायगी |
भारतीय विद्यार्थी और परिश्रमी पश्चिमी देशों में कैसे मार दिए जातें हैं, कयोंकि अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है और विदेश में कुतों से बचाव नहीं है | किसी भारतीय के मरने पर हमारे राजनेताओं को कोई कष्ट और दुःख नहीं होता, कयोंकि उनका उनसे कोई सम्बन्ध नहीं होता | इसी तरह जब कोई सैनिक यां सुरक्षाबल का जवान मारा जाता है, तो भी उनको कोई कष्ट यां दुःख नहीं होता, क्यों की उनको बचाने के लिये सुरक्षा दल सदैव तत्पर रहते हैं | एक तरह से देखा जाये तो हमारे राजनेता भेढ़ की खाल में भेड़िये हैं (They are wolves in sheep’s clothing) | वे रक्षक नहीं भक्षक हैं | राजा भ्रत्हरी कहते हैं “मनुष्ये रूपेण म्रिगाश चरन्ति हमारे ऐसे राजनेताओं का आचरण पशुओं का है |
हरकुलेस जब अपने राज्ये में वापस आया तो बहुत से राजनेता उसकी पत्नी, जो तब भी जवान थी, से राजा बनने के लिये विवाह का प्रस्ताव रख रहे थे | हरकुलेस जो भिखारी के भेस में वापिस आया था उसने अपने किशोर बेटे से मिलकर उन सब दुष्टों की हत्या कर दी जो उसकी पत्नी पर शादी का दबाव डाल रहे थे |
हमारे राजनेता पैसे और ताकत के बल पर चुनाव जीत जाते हैं और फिर अपने पेट के लिये अपनी पेटी भरते हैं और अपनी रोटी सकते हैं | बदलाव के लिये जनता के पास और कोई चारा नहीं रह जाता यां तो वोह राजनेताओं को कुर्सी से हटायें यां फिर उनके जुल्मो से कुचले जायें | चुनाव में कैसा गणित लगाया जाता है और कैसी शतरंज बिछाई जाती है, की अच्छा और बहुमतवाला प्रत्यार्शी भी हार जाता है | पैसे और शराब के नशे में बहुत से मतदाता ही नहीं देश ढूब जाता हैं |
शासन प्राप्त होने पर राजनेता को मतदाता से क्या मतलब, कयोंकि, पूंजीपति ग्राहक बन जाते हैं | घर बैठे बैठे ही पैसा विदेशी बैंको में जमा हो जाता है | ऐसे में तो ‘सर फिरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’ ऐसी सोच के साथ किसी न किसी को तो आगे आना होगा | चाहे राम हो, चाहे कृषण, चाहे चाणक्य, चाहे भगत सिंह, चाहे उधम सिंह यां फिर कोई अन्ना हजारे यां कोई रामदेव | अगर हम राष्ट्र की चेतना में नहीं जगे तो इतिहास फिर दोहराएगा और राष्ट्र के और टूकढ़े हो जायेंगे | इसलिए जब जागो तभी सवेरा | ‘बहती गंगा में हाथ धोलो’ नहीं तो ‘अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गयी खेत’ |
आज राष्ट्र और स्वतंत्रता पर गहरे संकट के बादल छायें हुये हैं | एक तरफ सब से बढ़ा शत्रु चीन जो भारतीये क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण कर भारतीय जल संसाधनों पर अंकुश लगता जा रहा है और दूसरी तरफ पाकिस्तान, जो कभी भी अपनी हरकतों से बाज ना आकर, हमेशा कोई ना कोई आक्रमण, उग्रवादी हरकत यां कोई घिनोनी हरकत करने से बाज नहीं आता | क्या हम कुछ भी नहीं कर सकते ? क्या हमने चूरियां पहन रखी हैं | क्या हम इस्रैल की तरह पाकिस्तान को और उसके आंतकवादी संगठनों को कोई सबक नहीं सिखा सकते ? क्या हमारे देश में मर्दों की कमी हो गई है ?
देश के अंधर लगातार आंतकवाद जड्हें फैला रहा है | पुरे उत्तर – पूर्व में आंतकवाद फैला हुआ है | ट्रेने को उड़ाह दिया जाता है और रास्तों से यातायात बंध कर दिया जाता है | नक्सलवादी नेपाल से लेकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिमी बंगाल, उद्दिसा, छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश , मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र आज नक्सलवाद का संकट झेल रहे हैं और पंजाब और कश्मीर में अलगाववादी आंतंकवादी सक्रिय हैं | हमारे राजनेता समान नागरिक संहिता को संसद के ठन्डे बसते में ढाल रखें हैं और आंतकवादियों को फंसी नहीं दी सकती क्यों की किसी खास कौम का वोट नहीं मिलेगा | इसलिये राष्ट्र भगतो जागो | आज भारत में कोई भी स्थान सुरक्षित नहीं है, किन्तु लचर राजनेताओं को भ्रष्टाचार और अपराधों से फुर्सत नहीं | राजनेता बिना प्रत्यक्ष चुनाव के राष्ट्रपति और राज्यपाल बनाये जाते है और फिर राष्ट और राज्य का पोषण के स्थान पर गंधी राजनिति से पोषण के स्थान पर राष्ट्र और राज्यों में अनीति का पालन और देश का दोहन होता है |
लचर राजनेताओं पर लाचार प्रधानमंत्री | बिना चुनाव के पिछले दरवाजे अंधर से आया प्रधानमंत्री हैन्गेर पर लटकाए कोट की तरह घूमता है पर नाह तो कुछ करने लायक है और नाह ही सत्ता का लोभ छोड़ सकता है | पिछले आठ सालों में देश गिरावट की तरफ गया है | भारत सरकार की कोई भी नीति प्रशंसा के लायक और सफल नहीं है | अर्थव्यवस्था, विदेश नीति, सुरक्षा व्यवस्था सब बुरी हालत में हैं | कोई प्रधानमंत्री को रिमोट कण्ट्रोल तो कोई मोहरा कहता है | देश की कोई भी समस्या सुलझ नहीं रही है |
व्यापारिक वश वाला मीडिया और बिके हुए जर्नलिस्ट सरकारी अधिक और गैरसरकारी कम हो गएँ हैं | फिर भी सारे मीडिया ने अपनी साख को अभी तक नहीं खोया | ऐसे में अगर सामाजिक मीडिया अभिव्यक्ति नहीं करेगा तो क्या हमें आज़ादी की दूसरी लढाई लड्नी पढेगी | सोशल मीडिया को भी नियंत्रित कर दिया गया तो यह अभिव्यक्ति की आजादी जैसे मौलिक अधिकारभी समाप्त हो जायेगा | बेरोजगारी से अपराध भी बढ़ रहा है |
देवा: नाह सपन्ति, जाग्रति जाग्रति देवा: | अपने अन्दर सोय हुये देवताओं ( दिव्य गुणों को ) को जगाओ और राष्ट्र की रक्षा तन-मन-धन ( मनसा-वाचा-कर्मणा ) से रक्षा करो | नहीं तो कहीं देर ना हो जाये | वयं राष्ट्र जाग्रयाम पुरोहित:- राष्ट्र जाग्रति हमारा अपना कर्त्तव्य है | इस लिये राष्ट्र को हर प्रकार की आहूति देने के लिये तैयार हो जाओ | देशभगतों ने तो अपना सब कुछ निछावर कर दिया यहाँ तक की अपने प्राण भी निछावर कर दिये | आईये हमभी तो कुछ करना सीखे | हम मृत्यु धर्मी हैं | आईये मरना है तो कुछ कर के मरें और अपने देश धर्म के लिये कुछ कर जायें | वोह न हो की आनेवाली पीढियां हमें कोसें |

i.e. uniform true belief through reason (Tarak). To quote John Stuart Mill “Every belief and custom should be subject to vigorous challenge in order to preserve their vitality and prevent their being held as dogma”.

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